रिलायंस Shell के पक्ष में आए 111 करोड $ के मध्यस्थता फैसले में भारत सरकार की चुनौती को खारिज कर दिया गया है

रिलायंस Shell के पक्ष में आए 11.1 करोड $ के मध्यस्थता फैसले में भारत सरकार की चुनौती को खारिज कर दिया गया है. सरकार ने पश्चिमी आपटटीए  पन्ना मुक्ता और ताप्ती तेल एवं गैस क्षेत्रों में लागत वसूली विभाग में रिलायंस इंडस्ट्रीज और सेल के पक्ष में मध्यस्थता फैसले को चुनौती दी थी. ब्रिटेन के उच्च न्यायालय ने इस मामले में सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया है.

आखिर क्या है मामला आइए जानते हैं, इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों से पता चला कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रॉस क्रांस्टन ने 9 जून 2022 को फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार को मध्यस्थता न्यायाधिकरण के निर्धारित सीमाओं को पूरा नहीं करने को लेकर अपनी आपत्तियां उस समय लानी चाहिए थी जबकि 2021 में यह फैसला सुनाया गया था. वह सरकार के साथ मुनाफे को साझा करने से पहले तेल और गैस की बिक्री से वसूल की जाने वाली लागत की सीमा को बढ़ाना चाहती थी. भारत सरकार ने भी किए गए खर्च बिक्री को बढ़ाकर दिखाने अतिरिक्त लागत वसूली और लेखा में खामी के मुद्दे को उठाया गया था. सिंगापुर के वकील क्रिस्टोफर लाओ पर लागू की अध्यक्षता में 3 सदस्य मध्य स्थित पैनल ने बहुमत से 12 अक्टूबर 2016 को अंतिम आंशिक फैसला यानी FPA जारी किया था. इस ने सरकार के इस विचार से सहमति जताई थी कि इन क्षेत्रों से लाभ की गणना मौजूदा 33% की कर की कटौती के बाद की जानी चाहिए ना कि पूर्व की व्यवस्था के अनुसार 50% कर के आधार पर.

3.85 अरब डॉलर का बकाया मांगा गया था, सरकार ने इस फैसले के आधार पर रिलायंस और बीजी एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन से 3.85 अरब डॉलर का बकाया मांगा था. दोनों कंपनियों ने ब्रिटिश उच्च न्यायालय में 2016 के एफपीए को चुनौती दी थी, उसने 16 अप्रैल 2018 को इस मुद्दे पर मध्यस्थता न्यायाधिकरण के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया गया था. मध्य स्थित या न्यायाधिकरण ने 29 जनवरी 2021 को दोनों कंपनियों के पक्ष में फैसला सुनाया था. रिलायंस की पिछले साल की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार ने ब्रिटेन की अदालत ने 2018 के अंतिम एफपीए फैसले के खिलाफ भारत सरकार की चुनौती को खारिज कर दिया था. इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय जनवरी 2021 में आया था न्यायाधिकरण ने 9 अप्रैल 2021 को रिलायंस और सेल को कुछ मामूली सुधार की अनुमति दी थी, लेकिन सरकार के आग्रह को खारिज कर दिया गया था उसके बाद सरकार ने ब्रिटेन के उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी थी अदालत ने इस पर 9 जून 2022 को फैसला सुनाया है.